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मेरी पसंद बनी मेरी पसंद बनी सबकी पसंद
1975 शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, महू में राष्ट्रीय सेवा योजना का हस्तलिखित दीवार पत्र शौकिया रूप से निकालते हुए चस्का जागा प्रिंट मीडिया में छपने का। 1979 से ’नई दुनिया‘ के पत्र स्तम्भ से चली कलम ने ’प्रिय पाठक‘ अखबार को जन्म दे दिया है। नईदुनिया के लगभग प्रत्येक स्तम्भ में छपने के बाद दैनिक भास्कर से प्रतिनिधि बतौर काम करना शुरू किया। राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाएं जैसे जनसत्ता, संडे मेल, हिन्दुस्तान, धर्मयुग, सरिता, मुक्ता, भू भारती, सच्ची कहानियां आदि में स्वतंत्र लेखन के साथ ही 1984 से 1999 तक क्रमशः दैनिक भास्कर, नवभारत, फ्री प्रेस में महू प्रतिनिधि के रूप में काम किया। लोकस्वामी, चेतना और एसडीए टाइम्स में भी कुछ-कुछ माह कार्य किया।
विदेश में आया ख्याल
सन् 2000 में सैशिल्स आयलैण्ड में जाना हुआ। समुद्र किनारे फुर्सत को क्षणों में ख्याल किया कि बहुत से अख़बारों में काम कर लिया क्यों न अब अपना अख़बार निकाला जाये। पूरे साल सपरिवार सैशिल्स आयलैण्ड में रहने करने के बाद जब वापस भारत आया तब स्वयं के अखबार प्रकाशन की इच्छा जागृत हुई। क्योंकि मैं अपनी तीखी लेखनी, स्पष्टवादिता, और निष्पक्षता की आदत से दैनिक अखबारों में स्वतंत्रता की सांस नहीं ले पा रहा था।
तब साप्ताहिक अखबार के रूप में अपनी पसंद से एक नाम सूझा..प्रिय पाठक। इसी नाम पर नई दिल्ली के रजिस्ट्रार (सूचना एवं प्रकाशन मंत्रालय) कार्यालय ने मोहर भी लगा दी। जब इस अखबार का पदार्पण हुआ तो ज्यादातर लोगों को प्रिय पाठक अटपटा सा नाम लगा। प्रारम्भ के 6 माह में प्रिय पाठक को पाठकों से कोई दिलचस्पी नहीं मिली। मगर संघर्ष जारी रहा और नियमित अखबार का प्रकाशन आर्थिक परेशानी के बावजूद चालू रहा। कतिपय प्रतिद्वंदी मेरे पुनः दैनिक अखबारों में पदार्पण में लगातार कांटे बिछाए जा रहे थे इसलिये प्रिय पाठक पर ध्यान देना मेरी भी मजबूरी बन गई थी। 6 माह बाद एक साप्ताहिक अखबार को पाठक के नजरिये से क्या चाहिये ये जड़ी बूटी अचानक दिल दिमाग को मिली और ’प्रिय पाठक‘ भी पाठकों के मन को संतुष्ट करने लगा। ये चाहत बढ़ती गई और प्रिय पाठक के पाठक दीवाने होते गए।
आज प्रिय पाठक एक नशे के रूप में पाठकों के दिल दिमाग पर छाया हुआ है। इसका सबूत है कि शुरू में 08 पेज ब्लेक एण्ड व्हाइट में प्रकाशित होने वाला यह अखबार अब नियमित 12 पृष्ठों का हो गया है कोशिश है 16 पृष्ठों का अखबार किया जाए।
जबकि दीपावली पर यह अखबार 12 पेज से शुरू होकर 24 पेज तक जा पहुंचा है। अब भी दीपावली पर इसके 30 पेज तक प्रकाशित होते हैं, जिसमें 16 पेज ग्लेज़्ड कलरफुल होते हैं। इस बात की खुशी है कि महू के इतिहास में प्रिय पाठक पहला नियमित, रंगीन और सर्वाधिक पृष्ठों वाला अखबार बनकर पाठकों की नजर में अपनी अलग और विशिष्ट पहचान कायम कर ली है।
आज के दौर में नए वर्ष में जहां कई दैनिक अखबार भी कैलेन्डर का प्रकाशन नहीं कर पाते हैं वहां प्रिय पाठक ने लगातार आकर्षक ग्लेज्ड पन्नों पर कैलेन्डर का प्रकाशन किया है। पाठकों का यह प्रिय अखबार सिर्फ महू, पीथमपुर, राऊ या इंदौर तक ही सीमित नहीं है, इसे डाक द्वारा भारत में जो लोग चाहते हैं, उन्हें भी भेजा जाता है। ई मेल, वाट्सअप तथा फेसबुक के जरिये विश्व के कोने कोनेे में यह अखबार पहुँच जाता है।